आज रहबर नहीं है तो क्या राह छोड़ दूँ।
पास मरहम नहीं है तो क्या आस छोड़ दूँ।।
वो मिलने आएगा ये बात आज तक याद है मुझे।
मैं अब जीना छोड़ दूं या उसकी याद छोड़ दूं।।
मैं ऐसा भूला उसको कि आशियाना पीछे रह गया।
उसे आज थोडा दूर छोड़ दूं या पास छोड़ दूं।।
आज महफ़िल में वहां राज़-ए-इश्क़ खुलेगा शायद।
मैं उनके हिस्से जीत लूं या अपनी मात छोड़ दूं।।
चाहे हर बार मुकरते है वो अपनी कही जुबान से।
इसी डर से घबरा के क्या मैं बात छोड़ दूं।।
होना था जो हो रहा है, मेरा मुस्कुराना खो रहा है।
अब मुस्कुराना भूल जाऊं या अफ़्लात छोड़ दूं।।
©Avdhesh